फ्रैक्चर ने तोड़ा सपना, कब्रिस्तान के किनारे बिताए तीन साल, आज हैं कोहली समेत पूरे भारत के चहेते
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ये कहानी है ऐसे लड़के की जिसका कभी हार न मानने वाला एट्टीट्यूड रहा, जिसने एक छोटे से गांव से लेकर टीम इंडिया तक का सफ़र सिर्फ अपने हुनर के दम पर पूरा किया। आपने कई फोटो देखे होंगे जिनमें एक लड़का एशिया कप की ट्रॉफी हाथों में उठाये नजर आ रहा है, लेकिन ना तो वो लड़का टीम का खिलाड़ी है और ना ही फील्डिंग, बैटिंग, बोलिंग या हेड कोच। फिर कौन था वो लड़का? आपने देखा होगा कि वर्ल्डकप में इंडिया और न्यूजीलैंड के बीच खेले गये मैच में धर्मशाला के ग्राउंड पर ओस की वज़ह से मैदान गीला हो रहा था, जिससे भारतीय गेंदबाजों के जूतों में गीली मिट्टी चिपक रही थी, इस मिट्टी की वज़ह से गेंदबाज फिसल भी सकते थे, तब एक लड़का हाथों में एक ब्रश लिए उन गेंदबाजों के जूतों से मिट्टी हटाता नजर आ रहा था। कौन था वो लड़का?
हम एक ऐसे लड़के की बात कर रहे हैं जिसकी क्रिकेट को लेकर जर्नी बहुत ही इंस्पायरिंग और स्टंनिंग है, उसकी तारीफ इंडिया के ग्रेट बैट्समैन विराट कोहली भी कई बार कर चुके हैं। अगर आप अपनी जिंदगी में मोटिवेशन चाहते हैं तो 37 वर्षीय इस इंसान की जिंदगी से अच्छा उदाहरण कोई और नहीं मिलेगा, इस इंसान की लाइफ से ज्यादा किसी की लाइफ आपको प्रेरित नहीं कर सकती। उसके संघर्षों की शुरुआत उसके होमटाउन कुमटा से हुयी, कुमटा से मुंबई, मुंबई से कारवार, कारवार से हुबली, हुबली से बेंगलुरू और बेंगलुरू से टीम इंडिया तक पहुँचने के बाद उसके संघर्षों की कहानी खत्म हुई। वो लड़का अपने शुरुआती दिनों में कई बार खाली पेट सोया, यहाँ तक कि उसे कुछ दिन कब्रिस्तान में सोकर भी गुजारने पड़े।
कब्रिस्तान के किनारे गुजारे तीन साल, फ्रैक्चर ने तोड़ा सपना
हर युवा लड़के की तरह उस लड़के का सपना भी टीम इंडिया के लिए खेलने का था। अपना सपना पूरा करने की ओर साल 1999 में जब उस लड़के ने अपने पहले कदम बढ़ाये और अपने होमटाउन कुमटा से हुबली पहुंचा तब उसकी जेब में मात्र 21 रूपये थे। जब वो लड़का हुबली पहुँचा तो उसके पास रहने के लिए कोई जगह नहीं थी, उसने लगभग एक हफ्ते तक हुबली के पुराने बस स्टैंड के नीचे रात बिताई, लेकिन एक दिन एक पुलिसवाले ने उसे बस स्टैंड से भगा दिया। फिर उस लड़के ने अपना नया ठिकाना एक मंदिर को बनाना चाहा, लेकिन मंदिर के पुजारियों ने उसे तुरंत मंदिर छोड़ कर जाने के लिए कह दिया। जब उसको रहने के लिए कोई जगह नहीं मिल रही थी तो उसने कब्रिस्तान के पास एक खाली पड़े टूटे-फूटे टिन शेड को ही अपना आवास बना लिया।
वो लड़का एक मैट और तकिये के सहारे उस कब्रिस्तान के पास लगभग तीन वर्ष रहा। एक दिन उस लड़के के एक क्रिकेटर दोस्त को उसके रहने के ठिकाने के बारे में पता चला और उस दोस्त ने कोच को बताया। इसके बाद कोच ने उस लड़के को हॉस्टल में रहने के लिए जगह दे दी। एक ऑफ स्पिनर गेंदबाज के रूप में वो लड़का बहुत ही अच्छी तरह से आगे बढ़ रहा था, लेकिन एक दिन उसके साथ एक दुर्घटना घट गयी। वो हॉस्टल की सीढ़ियों से फिसल कर गिर गया जिससे उसके बोलिंग आर्म में मेजर फ्रैक्चर हो गया। इस फ्रैक्चर ने उस लड़के के क्रिकेट में करियर बनाने के बारे में सोचने पर ही फुल स्टॉप लगा दिया। उस लड़के का पहला प्यार क्रिकेट ही थी, इसलिए उसने अपना ध्यान युवा खिलाड़ियों को कोचिंग देने पर फोकस किया।
श्रीनाथ ने दी कर्नाटक की टीम में जगह
इससे उस लड़के के लिए उभरते खिलाड़ियों को सिखाने के लिए नयी कोचिंग स्किल सीखने के रास्ते खुल गए। यहां से उस लड़के की जिंदगी में नया मोड़ आया, और उसे “कर्नाटक इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिकेट” (KIOC) में युवाओं को ट्रेंड करने का काम मिल गया। KIOC में उस लड़के ने बोलिंग मशीनों का प्रयोग करना सीखा, और वो बल्लेबाजों को बोलिंग मशीन से प्रैक्टिस कराता, लेकिन जब-जब बिजली चली जाती तो वो लड़का साइड आर्म से थ्रो करके बैट्समैन को प्रैक्टिस कराता। उसकी इस लगन और मेहनत ने उसे कर्नाटक के स्टार खिलाड़ियों का प्रिय बना दिया। कुछ दिनों बाद उस लड़के पर पूर्व इंडियन क्रिकेटर जवागल श्रीनाथ की नजर पड़ी। बिना समय गंवाये ही श्रीनाथ ने उस लड़के को कर्नाटक की सीनियर टीम के कोचिंग स्टाफ से जोड़ लिया।
सचिन का बना फेवरिट
कुछ दिनों बाद “दी ग्रेट सचिन तेंदुलकर” और “द वॉल राहुल द्रविड़” ने उसे एनसीए में देखा, और वो दोनों ही उससे इम्प्रेस हुए बिना नहीं रह सके। क्रिकेट के ऑफ सीजन में उस लड़के ने कई क्रिकेटरों की बैटिंग स्किल को निखारा। उसने छह महीने से ज्यादा का समय चिन्नास्वामी स्टेडियम में बिताया और अलग-अलग राज्यों के क्रिकेटरों की बैटिंग स्किल्स को सुधारने में मदद की। इस समय में उस लड़के को कोई भी सैलरी नहीं दी गयी। ये वो समय था जब वो अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटरों की नजरों में चढ़ चुका था। वो लड़का सचिन तेंदुलकर का फेवरेट बन गया। साल 2011 में उस लड़के को पहली बार टीम इंडिया से सीधे जुड़ने का मौका मिला। उसे ऑस्ट्रेलिया टूर के लिए टीम इंडिया के कोचिंग स्टाफ में जगह दी गयी।
जेब खाली थी, लेकिन नहीं दी पैसों को प्राथमिकता
इस टूर के बाद दोबारा 2014 में इंग्लैंड टूर के लिए फिर से टीम में जोड़ा गया। इस टूर के बाद महेंद्र सिंह धोनी और विराट कोहली की सिफारिश पर उस लड़के को लगभग स्थाई कोचिंग स्टाफ का सदस्य बना दिया गया। उसने कई बल्लेबाजों के साथ एक्स्ट्रा घण्टे काम किया। कई बल्लेबाजों ने उसे एक्स्ट्रा इंडीविजुअल पेमेंट करने का ऑफर दिया, लेकिन उसने वो पेमेंट लेने से मना कर दिया। जब उस लड़के की जेब बिल्कुल खाली थी, उसने तब भी किसी से फाइनेंशियल हेल्प नहीं मांगी। उस लड़के ने ईमानदारी, निस्वार्थ और डेडिकेशन अपने पहले प्यार क्रिकेट के लिए बचाए रखी, जो कि दिखाता है कि वो लड़का समर्पण, अनुशासन और सादगी का प्रतीक है।
रघु बने सबके चहेते
हम सब उस लड़के को रघु नाम से जानते हैं, उसका पूरा नाम राघवेन्द्र देवगी है। रघु साइड आर्म थ्रोअर हैं, जो कि भारतीय बैट्समैन्स को 150 की स्पीड से बॉल डाल कर मैच के लिए तैयार करते हैं। सचिन तेंदुलकर, सुनील गावस्कर, रवि शास्त्री, राहुल द्रविड़ और बीसीसीआई के सदस्यों से रघु को बहुत तारीफ मिली है। विराट कोहली तो खुलेआम कई बार कह चुके हैं कि उनका और अन्य इंडियन बैट्समैन्स का फास्ट बोलिंग के अगेंस्ट गेम इम्प्रूव कराने में रघु का बड़ा हाथ है। विराट कहते हैं कि रघु प्रैक्टिस में साइड आर्म से 155 की स्पीड से बोलिंग करते हैं, जिससे कि मैदान पर जाकर 150 की स्पीड वाली बॉल भी आसान लगती है। विराट कोहली ने ये भी कहा कि रघु को एक प्रॉपर कोच के जैसी नॉलेज है, जैसे कि किसका सर स्थिर है, किसका बैट सही नहीं आ रहा, वो हर बैट्समैन की खामियां सुधारने में लगे रहते हैं।
बहुत बढ़िया लेख अजय जी मजा आ गया