February 8, 2025

केएल राहुल: विफलता जताने के हैं बहाने दुनिया में कई, मगर सफलता की कुंजी सिर्फ मेहनत है

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फोटो क्रेडिट: केएल राहुल

ऊपर लिखीं गयीं लाइनें केएल राहुल पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं। सात साल पहले टीम इंडिया के लिए डेब्यू कर चुके केएल राहुल दो महीने पहले तक टीम इंडिया के परमानेंट सदस्य नहीं थे। एक स्टाइलिश बैट्समैन के तौर पर मशहूर राहुल ने अपने डेब्यू वनडे मैच में ही शतक लगाया था, लेकिन शिखर धवन और रोहित शर्मा के टीम में होने की वज़ह से वो टीम में परमानेंट जगह नहीं बना पाए और अंदर बाहर होते रहे। टीम इंडिया के कोच राहुल द्रविड़ को राहुल की क्षमता पता थी, इसलिए उन्होंने राहुल को मिडिल ऑर्डर में सेट करने का प्लान बनाया और राहुल लगभग उस पर खरे उतरे।

राहुल मिडिल ऑर्डर बैट्समैन के तौर पर टीम में शामिल तो हो सकते थे, लेकिन उसमें एक पेंच था, और वो पेंच था कि उनके टीम में होने के बाद विकेटकीपर की जगह खाली न बचना। इसके लिए राहुल ने टीम इंडिया में अपनी जगह बनाए रखने के लिए विकेटकीपिंग शुरू कर दी। राहुल जो कि विशेषज्ञ विकेटकीपर नहीं हैं, उन्होंने स्टेट लेवल टी-20 फॉर्मेट में और आईपीएल में तो विकेटकीपर बैट्समैन की भूमिका निभाई थी, लेकिन वनडे में ये काम आसान नहीं था। राहुल को कीपिंग में कई बार गलती करते देखा गया, कई बार वो आसान स्टम्पिंग और कैच छोड़ते नजर आये, जिससे कि कहा जाता था कि किसी बड़े स्टेज पर या किसी बड़े मैच में ये बहुत भारी पड़ जायेगा।

एनसीए जाकर विकेटकीपिंग में झोंक दी जान

चोटिल होने के बाद राहुल रिकवरी के लिए एनसीए गये, वहां उन्होंने विशेषज्ञ कीपर बनने के लिए बहुत मेहनत की, उसका रिज़ल्ट अब हमें विश्व कप 2023 में देखने को मिल रहा है। जब राहुल एशिया कप की टीम में चुने गए, तब उन्हें शुरुआती दो मैचों में आराम करने की जरूरत थी, उन मैचों में ईशान किशन ने बेहतरीन पारी खेल कर अपना स्पॉट लगभग पक्का कर लिया था। लेकिन जब पाकिस्तान के खिलाफ श्रेयस अय्यर चोटिल हुए और उनकी जगह राहुल को मौका मिला तो उन्होंने पहले तो बैटिंग करते हुए बेहतरीन शतक लगाया, और फिर वो कीपिंग करते हुए नजर आये।

राहुल चाहते तो उस दिन किशन को कीपिंग करने के लिए बोल सकते थे, क्योंकि राहुल अभी ही चोट से उबरे थे, और लगभग 35 ओवर की बल्लेबाजी करने के बाद कीपिंग करना उनके लिए परेशानी का सबब बन सकता था, लेकिन राहुल हाथ आये हुए इस मौके को जाने नहीं देना चाहते थे। राहुल ने विश्व कप में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ लगभग 50 ओवर फील्डिंग करने के बाद 97 रन की जो अदभुत पारी खेली, उससे उनकी फिटनेस पर की गयी मेहनत का अंदाजा लगता है। राहुल कुछ दिन पहले तक जिन कैचों को पकड़ने का प्रयास ही नहीं करते थे, अब उन्हीं कैचों को बड़ी आसानी से पकड़ लेते हैं।

विश्व कप में कर रहे विकेट के पीछे कमाल

फोटो क्रेडिट: केएल राहुल

श्रीलंका के खिलाफ पहले ओवर की दूसरी बॉल पर लेफ्ट साइड फुल स्ट्रेच डाइव लगा के बाउंड्री सेव करना हो या फिर, श्रीलंका के ही खिलाफ मोहम्मद शमी की बॉल पर चमीरा का डाइविंग कैच पकड़ कर कैप्टन को रिव्यू के लिए राजी करना हो सब शानदार रहा है। पाकिस्तान के खिलाफ इमाम का कैच भी लेफ्ट हैंड साइड फुल स्ट्रेच डाइव लगा के लिया था। बांग्लादेश के खिलाफ मोहम्मद सिराज की बॉल पर मेंहदी हसन मिराज का कैच मुझे अब तक इस वर्ल्डकप का सबसे बेहतरीन कैच लगा। सिराज की बॉडी लाइन बॉल को फ्लिक टाइप शॉट करने के चक्कर में मिराज खेल बैठे, राहुल ने पहले हल्का सा लेफ्ट फुट निकाल के लेफ्ट साइड फुल स्ट्रेच डाइव लगाई जिसमें भी सिर्फ लेफ्ट हैंड पर ही फोर्स आया, इस कैच में रिएक्शन टाइम 0.78 सेकेंड ही था।

राहुल का लेफ्ट साइड फुल स्ट्रेच डाइव लगाना इसलिए भी आकर्षित करता क्योंकि वो राइट हैंडर हैं, किसी भी राइट हैंडर के लिए ये आसान नहीं हो सकता वो भी तब जब वो बचपन से विशेषज्ञ विकेटकीपर ना हो। रिषभ पंत का चोटिल होना, और किशन का विशेषज्ञ ओपनर होना भी राहुल के पक्ष में गया, क्योंकि राहुल को ईशान से ज्यादा मिडिल ऑर्डर में खेलने का अनुभव है इसलिए उन्हें विश्वकप में ईशान पर वरीयता दी गयी है। राहुल अच्छे बैट्समैन हैं, लेकिन वो फैंस का भरोसा नहीं जीत पाये थे, क्योंकि उन पर एक ठप्पा लगा हुआ था कि वो बड़े मैच में या क्रूशियल मोमेंट पर प्रेशर ऑब्जर्व नहीं कर पाते हैं या फिर किसी बड़ी टीम के खिलाफ चोक कर जाते हैं। लेकिन इस वर्ल्डकप में पहले ही मैच में राहुल ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टीम इंडिया के सिर्फ दो रन पर तीन विकेट गिरने के बाद जो 97 रन की पारी खेली थी, उससे इंडियन क्रिकेट टीम के फैंस थोड़े से रिलैक्स जरूर फील कर रहे होंगे। उस पारी में कोहली से ज्यादा कॉन्फिडेंट तरीके से राहुल खेले थे।

बल्लेबाजी टेक्निक में भी किया है बदलाव

फोटो क्रेडिट: केएल राहुल

राहुल ने एनसीए में अपनी बैटिंग टेक्निक में भी थोड़ा सा बदलाव किया है। पहले वो अपने हाथों को बॉडी से थोड़ी दूर से लाते थे। इनिशियल मूवमेंट में उनका पिछला पैर जल्दी घूम जाता था जिससे सर स्थिर नहीं रह पाता था और ऐसी स्थिति में अंदर आने वाली बॉल पर उनके लिये समस्या खड़ी हो जाती थी क्योंकि इस तरह के स्टांस से स्वत: ही बैट और पैड के बीच एक बड़ा गैप बन जाता है। लेकिन राहुल ने इसमें भी बड़ा बदलाव किया है, अब वो शॉट को लगाने के लिए आतुर नहीं रहते, इनिशियल मूवमेंट में भी पिछला पैर खुलता नहीं और यदि खुलता भी है तो बहुत कम खुलता है, हाथ बॉडी के पास से आते हैं तो सर भी स्थिर रहता है ऐसी स्थिति में जब तक खुद गलती ना करें उन्हें बीट करना भी नामुमकिन है।

आलस सफलता का सबसे बड़ा शत्रु है, ऐसे लोगों के पास अपनी असफलता का कारण बताने के लिए एक नहीं बल्कि कई बहाने होते हैं, ऐसे लोग निरंतर असफलता की ओर बढ़ते रहते हैं और कभी सफल नहीं हो पाते। तो ये सब राहुल की मेहनत का ही कमाल है कि वो विशेषज्ञ विकेटकीपर ना होने के बाद भी विश्व कप जैसे टूर्नामेंट में फुल टाइम विकेटकीपर के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उनकी जगह कोई और आलसी खिलाड़ी होता तो उसके पास 100 बहाने होते ये बताने के लिए कि टीम में जगह क्यों नहीं थी, जबकि समझने की जरूरत ये है कि जगह होती नहीं बनाई जाती है।

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